पहले प्यार ( First love ) पर पढ़े शानदार प्यार भरी कविता
दोस्तों First love यानी जिंदगी का पहला इतना अच्छा होता है कि हम जिंदगी भर भूल नहीं सकते है । मगर इस मामले में हमारे पास कोई अनुभव न होने के कारण अक्सर गलती कर बैठते है और वो यादगार लम्हा बन जाता है बस - pahala pyar - तो पढ़िए शानदार Heart touching first love poem in hindi -
◆ Love poem in hindi तुमसे जब से प्यार हुआ
Title 1. हमारा पहला प्यार - Hamara pahala pyar -
प्यार के पंछी हम,
मदमस्त जीते थे ।
प्यार से दोनों,
एक दूसरे को संभालते थे ।
वो हमारा पहला प्यार ...
उन्मत होकर उड़ते थे,
जहाँ दिखा बसेरा सुंदर ।
बस हम दोनो वही,
साथ साथ बैठ जाते थे ।
वो हमारा पहला प्यार ...
उडते थे हम दोनों,
आशा के दिप लिए ।
प्यार के पंछी थे हम,
एक - दूसरे के बने थे ।
वो हमारा पहला प्यार ..
खुले आँसमान में,
प्रकृति के रंगो में ।
घुलमिल जाते थे,
जैसे निशा-सोम के संग ।
वो हमारा पहला प्यार ...
प्यार का आशियाना हमारा,
प्यार के पंछी नाम था उसका ।
सपनों से दुनिया सजाते थे,
सपनों के रंगो में रंग जाते थे ।
वो हमारा पहला प्यार ...
सपनों में ही प्यार का रंग,
चांद पर संजोते हम दोनों ।
चांद पर ही होगा अब,
तेरे - मेरे प्यार का संग ।
वो हमारा पहला प्यार ...
आज आशियानें अलग हमारे,
दिल की बात दिल में संजोये ।
हम आज भी रजनी से मिलते,
एक-दूसरे के हाल हम जान लेते ।
वो हमारा पहला प्यार ...
वो हमारा पहिला प्यार,
थे हमारे सपने हजार ।
नियती ने किया ऐसा वार,
हो गये हम दोनों तार तार ।
Heart touching shayri in hindi.
Title 2 - फिर खुद से ..... - Fir khud se -
तन - मन से तुमको चाहने लगे
फिर खुद से अंजान बन गये ।
ड़र हमे खुद - ब - खुद खोने की
तुझमे खोकर खुद को भुलने की ।
◆ दिल को छू लेने वाली कविता - प्रिय को निहारती
तुम बिन कुछ नही मेरा जीवन
कान्हा से अपनी मौत को मांगने लगे ।
जनम - जनम का यह कैसा बंधन
धड़कन और सांसें तुम्हे पुकारने लगे ।
तेरी दुनिया बसायी है मन में
मीरा सी बैरागी हम बने ।
तुझमे खोकर, तुझसा होकर
मिलन को हम राधा सी रोए ।
प्रेम गीत मेरे - तेरे यूं ही गूंजते रहे
विरह के तेरे - मेरे गीत लागे मुझे ।
राधा - श्याम के जैसे प्यारे प्यारे
खोकर तुझमें हम आज राधा बन गये ।
First love poem in hindi.
Title 3 - दर्पण - Drapan
कोई बुला रहा था, ए सखी सुन
मैं तुम्हारे मन का दर्पण हूं ।
तेरे मन को विचलित देख रहा हूं
मैं दर्पण के सामने खड़ी
मन के दर्पण को सुन रही थी
और बोल रही थी, मत रो
कह दें एक बार, ओल इज वेल
फिर मन का दर्पण हंसा
मै ने उ से दर्पण में दे खा
और बोला, ओल इज वेल ।।
तो मित्रों आशा करते हैं आज की कविता जरूर पसंद आई होगी । कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अवश्य बताए ।
डॉ. वसुधा पु. कामत 'छवि' कर्नाटक