Jhansi ki rani लक्ष्मीबाई पर शानदार ओजस्वी कविता
Hindisarijan में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है । आज कड़ी में पेश है अहमदाबाद गुजरात निवासी ChandraPrakash Gupt 'Chandra' की शानदार ओजस्वी कविता - Jhansi ki Rani ..
वीरता शौर्य पराक्रम की अद्भुत वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन -
◆ Gazal दोस्त दुनिया में न जिंदा होती मुहब्बत
Jhansi ki rani - Laxmi bai
मणिकर्णिका, मोरोपंत - भागीरथी की संतान अकेली थी
कानपुर के नाना की मुॅ॑हबोली अलबेली बहन छबीली थी
बचपन से खड्ग, कृपाण, कटारी उसकी बनी सहेली थी
देशभक्ति, साहस, शौर्य, पराक्रम की मूर्ति दुर्गा सी बनी नवेली थी ।
झांसी की रानी जब दहाड़ रही थी, अंग्रेजी सेना होकर निरीह निहार रही थी
वह रुद्र देवता जय जय काली बोल रही थी, अंग्रेजों की टांगें कांप रहीं थीं ।
स्वतंत्रता की चिंगारी जिसने पूरे भारत में भड़कायी थी
उसके अंतर्मन में प्रखर, प्रचंड अग्नि ज्वाल समायी थी
झांसी से अंग्रेजों को खदेड़ कर बढ़ी कालपी आयी थी
कालपी से पहुंच ग्वालियर, गोरी सेना की नींद भगायी थी
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया के असहयोग से सिंहनी आहत बहुत हुयी थी ।
यहां रानी का घोड़ा नया था, ह्यूम की सेना घेरे चारों ओर खड़ी थी
फिर भी लक्ष्मीबाई ने भारत माता को अंग्रेजों के मुंडों की भारी भेंट चढायी थी ।
रानी लक्ष्मीबाई थी घिरी अकेली, घायल सिंहनी गिरी धरा पर अमर वीर गति पायी थी
अंग्रेजी तलवारों से भारी लक्ष्मीबाई की तलवारें थी, जो विजली सी चलीं दुधारी थीं ।
पूरा भारत जिसकी उतारता आरती , ऐसी वह दुर्गा शक्ति अवतारी थीं
लक्ष्मीबाई पर चढ़ा बुंदेलखंड का पानी था, उस पर वह वीर मराठा पानी थी
वह गंगाधर से मानो ब्याही भवानी थी, जिसने अंग्रेजों को याद करायी नानी थी ।
Jhansi ki rani par kavita in hindi.
◆ विश्व पर्यावरण दिवस पर पढ़े शानदार काव्य रचना
जननी जय जय जय ( भारत माता की जय )
जन भय भंजन शत्रु निकंदन, जननी जय जय
भारत तोषणि भारत पोषणि, जननी जय जय ।
सर्व सुखदायनि मंगलकारणि, जननी जय जय
अघ नाशनि विघ्न विनाशनि, जननी जय जय ।
कोटि-कोटि पग भुज नयनों वाली, जननी जय जय
प्रलयंकारी शंकर पूजित रौद्र रूपिणी, जननी जय जय ।
युगों-युगों से जिसका रथ है काल चलाता,
सत्य सनातन संस्कृति का पथ जिससे आलोकित हो जाता ।
आभा से जिसकी कोटि सूर्य का तेज लजाता,
जो है अगणित अमर शौर्य पुॅ॑ज पुत्र प्रदाता ।
जिसके दिव्य अंश का अमर समर्पण,
हमारा प्रबल पराक्रम चमकता ।
नमस्ते सदा वत्सले माता, तेरे आवाह्न पर खल बल,पल में मर्दन हो जाता
साधना से तेरी मानव गौरव वैभव कीर्ति मंजरित,सुरभित तन मन पाता ।
कण कण तेरा पावन पुण्य तीर्थ है, स्वर्ग समान सुख दाता
दशों दिशाऐं प्रकाशित होतीं,पवन मंद मंद मधुर गीत है गाता ।
अरि मुंडों की माला पहनाकर मैं हर्षित होता,माथे चंदन रक्त लगाता
चिर आराधना करता तेरी पा कर वरद, कभी जीवन नहीं अघाता ।
अभिलाषित रहता सदा राष्ट्र उपवन का हर सुमन, सुरभित कर पाता
जग में धवल यश मंडित केशरिया ध्वज लहर लहर लहरा पाता ।
अपने संकल्पित प्रयत्नों से भारत का उज्जवल नवल अरुणोदय कर पाता
स्वयं का रुधिर बहा कर,बयार देश में बासंती झौकों की ला पाता ।
सौभाग्य मधुकर सा पाता, तेरी अलौकिक गोदी में मोक्ष सदा ही पाता
बृह्मा विष्णु महेश विज्ञान विशारद नारद ऋषि मुनि, कौन नहीं तेरे गुण गाता ।
देव दनुज किन्नर नर नारी तेरी महिमा गाते, कौन नहीं तेरी चरण शरण है पाता
तू ही उमा रमा ब्रह्माणी जय जय,राधा रुक्मणि सीता जय जय........ ।
जन जन रंजन भव भय भंजन असुर निकंदन जननी जय जय जय.......
भारत माता की जय जय जय, जननी जय जय जय......... ।
मित्रो यदि आपको कविता अच्छी लगी हो तो कमेंट बॉक्स में Jay hind लिखना न भूलें ।। चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र" (ओज कवि) अहमदाबाद, गुजरात ।।