Gazal दोस्त दुनिया में न ज़िंदा जो मुहब्बत होती
Hindisarijan पर आप सभी का स्वागत है । आज की गज़ले प्रसिद्ध ग़ज़लकार मध्यप्रदेश निवासी अरुण कुमार दुबे "अरुण" सागर मध्य प्रदेश द्वारा रचित तो चलिए पेश है -
दोस्त दुनिया में न ज़िंदा जो मुहब्बत होती
पत्थरों में न कभी फूलों सी लज्ज़त होती ।
सिद्क़ दिल से जो रिआया की तू ख़िदमत करता
रहनुमा सबसे जुदा तेरी सियासत होती ।
◆ लाइफ क्या है पढ़े शानदार कविता - जिंदगी एक सफर
सिर्फ़ नारे ही लगाते न जो यक ज़हती के
इन हवाओं में भरी ऐसी न नफ़रत होती ।
परवरिश में तेरी माँ बाप कमी रखते अगर
तेरे क़िरदार में इतनी कहाँ बुसअत होती ।
सिर्फ़ इक हम ही निभाते रहे उल्फ़त के चलन
काश उसकी भी तरफ से कोई हरक़त होती ।
हम जो पढ़ लेते कभी धर्म की तारीफ़ तो फिर
धर्म के नाम पर इस तरह न हुज़्ज़त होती ।
पेट आधा ही भरा रहता वतन में चाहे
मेरी तक़दीर में लिक्खी नहीं हिज़रत होती ।
लोग बेअक्ल हैं समझें न इशारे कुछ भी
साथ तुम हो तो जरा सी मिली खलबत होती ।
◆ दिल को छू लेने वाली कविता - प्रिय को निहारती
इसलिये आया न मैं आपकी महफ़िल में कभी
मेरे आने से कहीं आपको ज़हमत होती ।
मैं भी सूरज की तरह दुनिया में रोशन होता
मेरे अपनों की अगर मुझ पे इनायत होती ।
तुम न दिल तोड़ते भूले से कभी मुफ़लिस का
तुम मैं बाकी जो जरा सी भी शराफ़त होती ।
ज़ज़्बा-ऐ-मिहिर अरुण होता अगर ताबिन्दा
फिर किसी को न किसी से भी अदावत होती ।
Gazal ke udaharn -
ग़ज़ल 2
भटकी हुई इंसान की है जात अभी तक
ज़िंदा हैं ये फ़रसूदा रिवायात अभी तक ।
जब पहली मुलाकात में तुम हँसके मिले थे
आते हैं बहुत याद वो लम्हात अभी तक ।
मुझ पेकर-ए- वफ़ा से तेरा बेवफ़ा कहना
सीने में मेरे चुभती है ये बात अभी तक ।
जब दह्र को मालूम है अच्छाई का हासिल
मौजूद है क्यों दोस्त ख़राबात अभी तक ।
मशहूर है ये उसकी इनायात है सभी पर
इस सम्त नहीं कोई इनायात अभी तक ।
ये और कि हर मसअला हल हो गया लेकिन
है ज़हन में मौजूद सवालात अभी तक ।
फितरत है सियासत कि भला इसमें अजब क्या
करती है जो हर आन खुराफ़ात अभी तक ।
आओ की उगाना है हमें इल्म का सूरज
छाई है जिहालत की सियह रात अभी तक ।
इस उम्र में भी आके अरुण वैसे का वैसा
बदले नहीं हैं उसके ख़्यालात अभी भी ।
Pyar par gazal
ग़ज़ल 3.
मकबूलियत तुझे जो सियासत में चाहिए
अय्यारियाँ जमाने की सीरत में चाहिए ।
मतलब बरारियों का न शुबहात का मकाम
इखलास ओ एतिमाद मुहब्बत में चाहिए ।
काबू में अपनी ख्वाहिशों को रखना सीख तू
जेहनी सूकू जो तुझको हक़ीक़त में चाहिए ।
तेरा जमाल तेरा सरापा तरेरा बजूद
इसके सिवा न इश्क़ की सूरत में चाहिए ।
गिरने से पहले कह उठे वो जा किया मुआफ़
तासीर ऐसी अश्क़ ऐ निदामत में चाहिए ।
मैदान जंग में जो थे दुश्मन के तरफदार
हिस्सा उन्हें भी माले गनीमत में चाहिए ।
लड़ने का हौसला जो मुसीबत में दे खुदा
कुछ सब्र भी अरुण को मुसीबत में चाहिए ।
Gazal in urdu
ग़ज़ल 4.
कब हुआ कैसे अयाँ याद नहीं
फितना- ऐ- सोज़े निहाँ याद नहीं ।
चाह मंजिल की है लेकिन मुझको
तेरे कदमों के निशाँ याद नहीं ।
क्या कहूँ आपसे अब तो मुझको
अपना ही तर्ज़े बयाँ याद नहीं ।
मेरी तक़दीर ने गम का मुझ पर
रख्खा था कोहे -गराँ याद नहीं ।
दावा -ए -इश्क़ वो करता है मगर
इश्क़ के सूदो-ज़ियाँ याद नहीं ।
क्यों हुए थे कभी तेरे आँसू
मेरी आँखों से रवाँ याद नहीं ।
रात आते ही अरुण का साया
खो गया जाने कहाँ याद नहीं ।
Gazal kaise likhe
ग़ज़ल 5.
झूठा किया गया हो कि सच्चा किया गया
वादा तो खैर वादा है वादा किया गया ।
मौला मेरी हयात में क्या क्या किया गया
अपने ही हाथ अपना ख़सारा किया गया ।
दुनिया का ही रहा न रहा आख़िरत का मैं
यह मेरे साथ कैसा तमाशा किया गया ।
लिख्खा नसीब का था के थी तेरी बेहिशी
तुझसे कोई भी काम न पूरा किया गया ।
उसने उठाया बज़्म से इसका नहीं मलाल
तेरी तरफ से भी तो इशारा किया गया ।
वो बदनसीब हूँ मैं जो दुनिया की सम्त से
अपना किया गया न तुम्हारा किया गया ।
पानी तो दोस्त पानी है तासीर है अलग
मीठा किया गया कहीं खारा किया गया ।
सरकार के इरादे को समझे नहीं किसान
सड़कों पे बे बज़ह ही बखेड़ा किया गया ।
हमको हलाल रोटी की आदत थी इसलिए
फुटपाथ पर भी हँसके गुजारा किया गया ।
जब वक़्त मेहरबान हुआ मुझपे ऐ अरुण
मेरे लिए भँवर को किनारा किया गया ।
ग़ज़लकार
अरुण कुमार दुबे "अरुण"
सागर मध्य प्रदेश