Gazal दोस्त दुनिया में न ज़िंदा जो मुहब्बत होती

Gazal दोस्त दुनिया में न ज़िंदा जो मुहब्बत होती


Gazal दोस्त दुनिया में न ज़िंदा जो मुहब्बत होती


Hindisarijan पर आप सभी का स्वागत है । आज की गज़ले प्रसिद्ध ग़ज़लकार मध्यप्रदेश निवासी अरुण कुमार दुबे "अरुण" सागर मध्य प्रदेश द्वारा रचित तो चलिए पेश है -


दोस्त दुनिया में न ज़िंदा जो मुहब्बत होती

पत्थरों में न कभी फूलों सी लज्ज़त होती ।


सिद्क़ दिल से जो रिआया की तू ख़िदमत करता

रहनुमा सबसे जुदा तेरी सियासत होती ।

लाइफ क्या है पढ़े शानदार कविता - जिंदगी एक सफर

सिर्फ़ नारे ही लगाते न जो यक ज़हती के

इन हवाओं में भरी ऐसी न नफ़रत होती ।


परवरिश में तेरी माँ बाप कमी  रखते अगर

तेरे क़िरदार में इतनी कहाँ बुसअत होती ।


सिर्फ़ इक हम ही निभाते रहे उल्फ़त के चलन

काश उसकी भी तरफ से कोई हरक़त होती ।


हम जो पढ़ लेते कभी धर्म की तारीफ़ तो फिर

धर्म के नाम पर इस तरह न हुज़्ज़त होती ।


पेट आधा ही भरा रहता वतन में चाहे

मेरी तक़दीर में लिक्खी नहीं हिज़रत होती ।


लोग बेअक्ल हैं समझें न  इशारे कुछ भी

साथ तुम हो तो जरा सी मिली खलबत होती ।

दिल को छू लेने वाली कविता - प्रिय को निहारती

इसलिये आया न मैं आपकी महफ़िल में कभी

मेरे आने से कहीं आपको ज़हमत होती ।


मैं भी सूरज की तरह दुनिया में रोशन होता

मेरे अपनों की अगर मुझ पे इनायत होती ।


तुम न दिल तोड़ते भूले से कभी मुफ़लिस का

तुम मैं बाकी जो जरा सी भी शराफ़त होती ।


ज़ज़्बा-ऐ-मिहिर अरुण होता अगर ताबिन्दा

फिर किसी को न किसी से भी अदावत होती ।


Gazal ke udaharn -

ग़ज़ल 2


भटकी हुई इंसान की है जात अभी तक

ज़िंदा हैं ये फ़रसूदा रिवायात अभी तक ।


जब पहली मुलाकात में तुम हँसके मिले थे

आते हैं बहुत याद वो लम्हात अभी तक ।


मुझ पेकर-ए- वफ़ा से तेरा बेवफ़ा कहना

सीने में मेरे चुभती है ये बात अभी तक ।


जब दह्र को मालूम है अच्छाई का हासिल

मौजूद है क्यों दोस्त ख़राबात अभी तक ।


मशहूर है ये उसकी इनायात है सभी पर

इस सम्त नहीं कोई इनायात अभी तक ।


ये और कि हर मसअला हल हो गया लेकिन

है ज़हन में मौजूद सवालात अभी तक ।


 फितरत है सियासत कि भला इसमें अजब क्या

करती है जो हर आन खुराफ़ात अभी तक ।


आओ की उगाना है हमें इल्म का सूरज

छाई है जिहालत की सियह रात अभी तक ।


इस उम्र में भी आके अरुण वैसे का वैसा

बदले नहीं हैं उसके ख़्यालात अभी भी ।


Pyar par gazal


Pyar par gazal

ग़ज़ल 3.

मकबूलियत तुझे जो सियासत में चाहिए

अय्यारियाँ जमाने की सीरत में चाहिए ।


मतलब बरारियों का न शुबहात का मकाम

इखलास ओ एतिमाद मुहब्बत में चाहिए ।


काबू में अपनी ख्वाहिशों को रखना सीख तू

जेहनी सूकू जो तुझको हक़ीक़त में चाहिए ।


तेरा जमाल तेरा सरापा तरेरा बजूद

इसके सिवा न इश्क़ की सूरत में चाहिए ।


गिरने से पहले कह उठे वो जा किया मुआफ़

तासीर ऐसी अश्क़ ऐ निदामत में चाहिए ।


मैदान जंग में जो थे दुश्मन के तरफदार

हिस्सा उन्हें भी माले गनीमत में चाहिए ।


लड़ने का हौसला जो मुसीबत में दे खुदा

कुछ सब्र भी अरुण को मुसीबत में चाहिए ।


Gazal in urdu

ग़ज़ल 4. 

कब हुआ कैसे अयाँ याद नहीं

फितना- ऐ- सोज़े निहाँ याद नहीं ।


चाह मंजिल की है लेकिन मुझको

तेरे कदमों के निशाँ याद नहीं ।


क्या कहूँ आपसे अब तो मुझको

अपना ही तर्ज़े बयाँ याद नहीं ।


मेरी तक़दीर ने गम का मुझ पर

रख्खा था कोहे -गराँ याद नहीं ।


दावा -ए -इश्क़ वो करता है मगर

इश्क़ के सूदो-ज़ियाँ याद नहीं ।


क्यों हुए थे कभी तेरे आँसू

मेरी आँखों से रवाँ याद नहीं ।


रात आते ही अरुण का साया

खो गया जाने कहाँ याद नहीं ।


Gazal kaise likhe


Gazal kaise likhe 

ग़ज़ल 5.

झूठा किया गया हो कि सच्चा किया गया

वादा तो खैर वादा है वादा किया गया ।


मौला मेरी हयात में क्या क्या किया गया

अपने ही हाथ अपना ख़सारा किया गया ।


दुनिया का ही रहा न रहा आख़िरत का मैं

यह मेरे साथ कैसा तमाशा किया गया ।


लिख्खा नसीब का था के थी तेरी बेहिशी

तुझसे कोई भी काम न पूरा किया गया ।


उसने उठाया बज़्म से इसका नहीं मलाल

तेरी तरफ से भी तो इशारा किया गया ।


वो बदनसीब हूँ मैं जो दुनिया की सम्त से

अपना किया गया न तुम्हारा किया गया ।


पानी तो दोस्त पानी है तासीर है अलग

मीठा किया गया कहीं खारा किया गया ।


सरकार के इरादे को समझे नहीं किसान

सड़कों पे बे बज़ह ही बखेड़ा किया गया ।


हमको हलाल रोटी की आदत थी इसलिए

फुटपाथ पर भी हँसके गुजारा किया गया ।


जब वक़्त मेहरबान हुआ मुझपे ऐ अरुण

मेरे लिए भँवर को किनारा किया गया ।


ग़ज़लकार 

अरुण कुमार दुबे "अरुण"

सागर मध्य प्रदेश

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