नारी तू नारायणी पर कविता । Poem on Nari Tu Narayani
मित्रों Hindisarijan पर आप सबका हार्दिक अभिनंदन है । मानव समाज नर नारी से मिलकर बना है । दोनो ही एक दूसरे के पूरक हैं । या यूँ कहे कहे कि नर नारी दोनो ऐसे पहिए है जिस पर मानव समाज नाम का रथ चलता है । मगर पुरूष प्रधान समाज ने नारी को सम्मान नहीं दिया । एक तरफ नारी को नारायणी का दर्जा प्राप्त है वही दूसरी तरफ प्रताड़ित भी किया जाता है । भारतीय संस्कृति में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है । नारी को देवी, गृह लक्ष्मी, शक्ति जैसे शब्दों से सुशोभित किया । जब जब नारी को शक्ति प्रदर्शन का अवसर मिला उन्होंने अपने आपको Narayani साबित किया । इसी विषय Nari Tu Narayani पर कवि बाबूराम सिंह बहुत ही संजीदगी से काव्य पंक्तियों को तरासा है । तो चलिए पेश है - नारी तू नारायणी पर कविता । Poem on Nari Tu Narayani
दो कुलों की औरत ही, रखती मान -सम्मान ।
नारी है नारायणी, पढ़ लिख हो गुणवान ।।
नारी जब पढ़ लिखकर, हो जाती हुशियार ।
जग सारा सुख से सिंचे, अपना घर -परिवार ।।
◆ प्यार भरी कविता - प्रेम पिपासा । Hindi kavita on love
नारी देती सरस सुख, पाय शिक्षा भरपुर ।
शिक्षा से सम्पन्न करो, नारी जग की नूर ।।
शिक्षा ज्ञानका स्त्रोत है, समय की यह पुकार ।
नारी गृहलक्ष्मी सदा, शिक्षा बिना लाचार ।।
नारी बिना विकास कहाँ, शिक्षा बिना उजियार ।
शिक्षा हेतु नार सब , तन-मन से तइयार ।।
बहु -बेटी शिक्षित करे, यह सबका अधिकार ।
कदम -कदम पर अन्यथा, दुख पाये संसार ।।
नाम यश पुण्य किर्ती की, सच नारी सोपान ।
नारी शिक्षा का चहुँदिश, छेडे़ सब अभियान ।।
नारी सुशिक्षा सर्वोपरि, रखे सब कोई ध्यान ।
नारी बिना जीवन नरक, घर होता शमशान ।।
नारी उपर नजर नियत, रखता है जो नेक ।
अवनी पर मानव वही, आँख उठा के देख ।।
नारी शिक्षा के बल पर, हो घर देश आबाद ।
नारी अगर नीचे गिरे, सब कुछ हो बरबाद ।।
पतिधर्म सर्वोपरि है, जग बिच नार श्रृंगार।
बने लोक-परलोकसुचि, झुक जाते करतार ।।
सुचि सेवा सदभावना , चाहो जो आराम।
पढे़ लिखे नारी सभी , सच कवि बाबूराम ।।
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Nari Tu Narayani par kavita.
दोस्तों की नारी शक्ति की महिमा अपरंपार है । एक पुरूष की उत्पत्ति से लेकर अंत तक एक नारी ही साथ देती है । जैसे माँ, बहन, पत्नी व बेटी । या यूँ कहे कि नारी के बिना नर अधूरा है । और जिस घर की नारी पढ़ी लिखी, सुंदर एवं सुशील हो वहां Nari Tu Narayani की कहावत चरितार्थ होती है । एक स्वर्ग सा होता है । औऱ जिस घर मे नारी को सम्मान दिया जाता है वहां तो साक्षात गृहलक्ष्मी का वास होता है । कवि बाबूराम सिंह ने नारी सम्मान के रूप में बेहतरीन सृजन किया है तो लीजिए पेश है - Nari Par Dohe -
त्याग समर्पण व श्रध्दा, ममता प्यार दुलार ।
ग्रहणी मधु मधुर महकी, घर आंगन शुभ व्दार ।
गृहलक्ष्मी शुभ नारि है, भाग्यवती सुख सार ।।
जन-जन की जननी यही, समग्र सृष्टि आधार ।।
बहू सुता माता बहन, पत्नि योग्य सत्कार ।
अमन चैन अग जग भरे, बाढै़ सुख परिवार ।।
नारी की महिमा महा, महक उठे संसार ।
आनंदित जग को करे, यही धर्म का सार ।।
पालन पोषण में सबल, सच नारी अनमोल ।
नारि बिन भोगे नरक, संग स्वर्ग बिन तोल ।।
सेवा में सिरमौर है, अरू सर्वोत्तम त्याग ।
बिन नारी विस्तार ना, जाग सके तो जाग ।।
क्षमा दया कृपामयी, क्यों बेबस है नारि ।
जागरूक हो यत्न से, इस पर करे विचार ।।
कर न्योछावर नारि सब, करती नर तैयार ।
फिर क्यो उससे छीनते, जीने का अधिकार ।।
जन-जनको सुख बांटती, नाकर निजपरवाह ।
बदले में बस पा रही, दुख दर्द और आह ।।
भ्रूण हत्या पुत्री की, है दहेज का शाप ।
इससे बढ़कर केअधम, नहीं जगत में पाप ।।
करे सु आदर मान सब, सत्य धर्म के साथ ।
नारी है नारायणी, तभी बनेगी बात ।।
पावन परम पुनीत है, नित नारी उपकार ।
कहते बाबूराम कवि परम पूज्य है नारि ।।
Nari par kavita in hindi.
दोस्तों प्रवर्तित काल मे पुरुष प्रधान समाज में नारी प्रताड़ित हो गई । उन पर अत्याचार का ग्राफ बढ़ने लगा । विभिन्न सामाजिक प्रथाओं एवं कुप्रथाओ में जकड़कर खुद असहज महसूस करने लगी । फिर भी पुरुष के संग खड़ी रही है । त्याग व धैर्य शाली का परिचय दिया । इसी विषय Nari Tu Narayani पर कवि बाबूराम सिंह ने वर्णन किया है तो चलिए पेश है - दहेज प्रथा अभिशाप -
दानव क्रूर दहेज अहा ! महा बुरा है पाप ।
जन्म-जीवन नर्क बने, मत लो यह अभिशाप ।।
पुत्रीयों के जीवन में, लगा दिया है आग ।
खाक जगत में कर रहा, आपस का अनुराग ।।
जलती हैं नित बेटियाँ, देखो आँखें खोल ।
तहस-नहस सब कर दिया, जीवन डावाडोल ।।
पुत्री बिना सम्भव नहीं, सृष्टि सरस श्रृंगार ।
होकर सब कोइ एकजुट, इस पर करो विचार ।।
अवनति खाई खार यह, संकट घोर जहान ।
दुःख पावत है इससे, भारत वर्ष महान ।।
मानवता क्यों मर गयी, जन्म जीवन दुस्वार ।
नाहक में क्यों छीनते, जीने का अधिकार ।।
पग बढा़ओ एक-नेक हो, बढे़ परस्पर प्यार ।
त्यागो सभी दहेज को, पनपे तब सुख-सार ।।
बिन दहेज शादी करो, फरो जगत दरम्यान ।
पाओ सुख सुयश अनुपम, खुश होंगे भगवान ।।
दानों में सबसे बडा़, जगत में कन्यादान ।
अग- जग सु अनूठा बने, जागो हे इन्सान ।।
अतिशय दारुण दुख यहीं, करो इसका निदान ।
दिन-दिन मिटता जा रहा, मानव की पहचान ।।
अधम, अगाध दहेज है, साधो मोक्ष का व्दार ।
जिससे सुख पाये सदा, शहर गांव परिवार ।।
ज्ञानाग्नि में भस्म कर, बद दहेज का नाम ।
चारों धामका फल मिले सच कवि बाबूराम ।।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ, विजयीपुर गोपालगंज, बिहार 841508