संत शिरोमणि धारू जी महाराज की तपोभूमि एवं उनकी समाधि स्थल

संत शिरोमणि धारू जी महाराज की तपोभूमि एवं उनकी समाधि स्थल


Sant shiromani dharu ji meghwal.


Hindisarijan में आप सभी का स्वागत है । दोस्तो राजस्थान सन्त महात्माओ की तपोभूमि रहा है । ऐसे कई महान संत हुए जिन्होंने अपने तप के बल पर न केवल भक्तों को सन्मार्ग की प्रेरित किया बल्कि राजा महाराजाओ को नतमस्तक कर दिया । 14वी शताब्दी में ऐसे ही महान संत मेघरिख धारू जी महाराज ( Dharu megh ) हुए थे । 

चूंकि sant shiromani Dharu ji Meghwal किसी परिचय के मोहताज नहीं है । अब तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । और भी शोध कार्य जारी है । इतना ही नहीं गीतों, भजनों में Dharu megh को गया जाता है । तो चलिए जानते है - sant shiromani Dharu Meghwal की तपोभूमि एवं उनकी समाधि स्थल के बारे में -

मेघवाल समाज एक प्रसिद्ध सिद्धों, महान संतो, तपोबल से जीवित समाधि लेने वाले तपस्वी संतों का समाज है । बाबा रामदेव जी के समय मारवाड़ की धरती पर संत शिरोमणि धारू जी महाराज अवतरित हुए धारू जी के बारे में ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करते हैं तो मालूम होता है कि धारू जी महाराज गांव दुधवा के रहने वाले थे एवं इनका गोत्र मेघवंश इतिहास मैं पँवार बताया गया है । 

शोधकर्ताओं ने पाया है कि इनके वंशज वर्तमान में  दुधवा में निवासरत नहीं  है । दुधवा  के राजपूतों की रावो की बई अनुसार रुपादे के साथ धारू जी को भक्ति भाव के बाल सखा होने के कारण  साथ में  भेजा गया था । 

धारुजी महाराज की तपोभूमि एवं समाधि स्थल -

महेवा में धारू जी बुनकर का कार्य करते एवं भक्ति भाव में तल्लीन रहते थे । धारू जी महाराज की  तपोभूमि कर्म स्थली  एवं निर्वाण स्थली मेवानगर जिला बाड़मेर है । धारू जी की समाधि ( Dharu ji ki samadhi ) स्थल नाकोड़ा जैन मंदिर के पास ही पहाड़ी की तलहटी पर स्थित है जहां पर मेवानगर गांव के मेघवाल लोग समाधि पर भजन कीर्तन वगैरा करते रहते थे । 

बाद में तपस्वी संत श्री श्री 1008 लुंबनाथ जी महाराज ने चबूतरे का जीर्णोद्धार संवत 2021 में  करवाया जिसमें 3 समाधिया देखी गई थी जिस पर मंदिर बनाया  । वर्तमान में मेघवाल समाज की ओर से वर्ष 2019 में  भव्य मंदिर का निर्माण कार्य करवाया गया है ।  इसकी प्रतिष्ठा  अभी तक  की जानी है । 

वर्तमान में मेघवाल समाज द्वारा 8.5 बीघा कब्जा शुदा भूमि पर मंदिर, भोजनशाला, कमरों का निर्माण, चहार दिवारी,  भूमि समतल आदि कार्य  करवाए गए  है ।

 इसके अलावा लूनी नदी में जहां पर रावल मल्लीनाथजी का मंदिर  तिलवाड़ा  गांव मेला  स्थल  पर बना हुआ है वहां पर धारूजी व बाबा रामदेव जी के पगलिया की पूजा की जाती है । मेघवाल समाज ने मिलकर मल्लिनाथ जी मंदिर से कुछ दूरी पर नदी के  उत्तर की ओर धारूजी का मंदिर बनाने का निर्णय लिया बाद में मेघवाल समाज में विवाद होने पर लूनी नदी के उत्तर व दक्षिण में अलग-अलग दो मंदिर बनवा दिए गए दोनों मंदिरों पर पूजा पाठ होता है ।

 नदी के उत्तर की ओर बोरावास गांव की ओर से मंदिर का रखरखाव किया जाता है  दोनों मंदिर के बीच लूनी नदी है नदी के दक्षिण वाले लोग दक्षिण मंदिर की ओर उत्तर वाले लोग  उत्तर वाले मंदिर पर सहयोग करते हैं एवं वहीं पर आते जाते हैं दोनों मंदिर पूर्णतया बन चुके हैं छोटा-मोटा काम चलता रहता है दोनों मंदिर के बीच नदी सीमा रेखा है ।

Sant Shiromani Dharu ji meghwal -

मेघवालों के आराध्य संत शिरोमणि धारूजी महाराज  के  जहां पर मंदिर बनना जरूरी था वहां पर जैन समाज व मेघवाल समाज के बीच भूमि का विवाद होने के कारण समाधि स्थल पर मंदिर नहीं बन पाया । लेकिन अब विवादित स्थिति जैन समाज की ओर से नहीं है भूमि के स्वामित्व  व नाला बहाव मार्ग के संबंध में कार्रवाई निर्णायक स्तर पर विचाराधीन है ।

 तपस्वी संत लूमनाथजी महाराज के गादीपति वचन सिद्ध तपस्वी संत स्वामी हीरानाथजी महाराज ने एक रोज मेघवाल समाज को उलाहना दिया कि धारूजी महाराज समाधि स्थल के नजदीक जैन समाज द्वारा जगह-जगह मकराना के मंदिर बनाए गए है । मेघवाल समाज भी धारू जी की समाधि पर एक मकराना का मंदिर बनाने के लिए अपनी ओर से सबसे पहले मंदिर निर्माण हेतु राशि भेंट की तत्पश्चात अन्य मौके पर मौजूद लोगों ने भी एक एक हजार राशि का चंदा भेंट किया ।

 इस प्रकार मौके पर ही डेढ़ लाख की राशि एकत्रित हो गई जो ट्रस्ट अध्यक्ष श्री सागरमल जी सोलंकी के पास जमा करवा दी गई एवं महीने भर बाद मकराना का  मंदिर बनाने का निर्णय लिया गया जिस पर जसोल पट्टी के आस-पास के गांवों से प्रति परिवार के अनुसार इकट्ठा करने का निर्णय लिया गया एवं करीब 20 लाख में मंदिर निर्माण का ठेका दिया गया एवं कार्य प्रारंभ किया गया बाद में यह धीरे धीरे राशि एकत्रित होती गई समाज के सक्षम लोगों ने भी अलग से अपनी सामर्थ्य अनुसार राशि भेंट की ।

 लुंबनाथजी महाराज  ने 12 वर्ष तक खड़ी तपस्या की थी जिन की समाधि  संवत 2030 धारू जी समाधि के पास पर छतरी पर निर्माण कार्य, लूमनाथजी के  धूना पर भी बहुत ही सुंदर गोल छतरी का 14 खंबे लगाकर निर्माण कार्य लगभग पूर्ण होने को है ।

धारुजी महाराज के अन्य मंदिर -
जानकारी अनुसार धारू जी का एक मंदिर पाली जिले मैं जैतारण के पास वायद गांव में बना हुआ है । एक मंदिर तिलवाड़ा, एक मंदिर बोरावास, एक मंदिर धारू जी महाराज की समाधि स्थल मेवानगर में बना है ।  एक मंदिर धारूजी के पुश्तैनी गांव दुधवा मैं 36 कौम की ओर से मालदेव जी व रानी रूपादे जी का बना है, जिसमें धारूजी महाराज की मूर्ति भी विराजमान है । अंजार गुजरात मैं भी रानी रूपादे मालदेव जी के साथ धारू जी की मूर्ति विराजमान है ।

श्री नाहरसिंहजी राठौड़ जसोल द्वारा लिखित पुस्तक में रावल मालदेव जी व मल्लिनाथ जी  को एक ही शख्स बताया गया है एवं रानी रूपा देजी को उनकी रानी बताया गया  है। जिन्हें  माला, मालोजी, मालदे के नाम से भी जाना जाता है । पुस्तक संत शिरोमणि  रानी रूपादे व रावल मल्लिनाथ" लेखक नाहरसिंहजी जसोल रावल मल्लिनाथ जी के परिवार से ही है इसलिए सत्यता की कसोटी पर इस पुस्तक में लिखा गया सही प्रतीत होता है ।

एक बात और रावल मल्लिनाथ जी के मंदिर में धारू जी, बाबा रामदेवजी के पगलिए बुजुर्गों के अनुसार जब से मंदिर बना है तब से यहीं पर है जो इस बात का प्रमाण है की मालदेव जी ही मल्लिनाथ जी है । मालदेव जी उर्फ मल्लिनाथ जी की मृत्यु विक्रम संवत 1456 ईसवी सन 1399 बताई जा रही है एवं विक्रम संवत 1431 में गद्दी पर बैठे तब  तिलवाड़ा  पशु मेले का  आयोजन  प्रारंभ हुआ था । 

Dharu meghwal.

बाबा रामदेव के समकालीन थे धारुजी महाराज -

बाबा रामदेव जी, हड़बूजी, पाबूजी, राणा मोकल, पीर पैगंबर, एलू, मालदेव जी  रानी रूपादे संत धारु जी के जम्मा जागरण में मेवानगर आना बताया जा रहा है । मंडोर में  बाबा रामदेव जी, मल्लिनाथ जी  साथ में रानी रूपा, हड़बूजी, पाबूजी  की मूर्तियां  साल में लगी हुई है । 

धारू जी ( Dharu ji ) के बड़े भाई  अजबाजी की पत्नी मातादेवू रामदेवजी की पर्दा गुरु थी । आधुनिक शोध के अनुसार रामदेव जी का समय विक्रम संवत 1409 -1442 का बताया जा रहा है इसवी सन 1385 में जीवित समाधि ली एवं मल्लिनाथ जी का समय  विक्रम संवत 1380-1456 ( 1317-1401 ईसवी ) बताया जा रहा है । 

उपरोक्त सारे तथ्य रावल मल्लिनाथ जी ( Mallinath ji ) रानी रूपादे एवं धारू जी महाराज ( Dharu ji Maharaj ) को बाबा रामदेव जी के समकालीन होना साबित करते हैं । गुजरात में रूपादे और मल्लिनाथ जी का गुरुत्व पद धारू मेघ को दिया गया है  मालानी क्षेत्र में भी सभी संतो ने मेघवालों की वाणी में" धारू माल रूपादे बड़ी वेल" में धारू जी को मुख्य माना है ।

मेवानगर में बना धारू जी महाराज का भव्य मंदिर -
वर्तमान में गादीपति तपस्वी व वचनसिद्ध गुरु महाराज श्री हीरानाथजी महाराज विराजमान है l जिनके आशीर्वाद व सानिध्य में इस तपोभूमि पर निर्माण एवं विकास कार्य किए जा रहे हैं एवं मेघवाल समाज उनके आदेश की पालना में सहयोग के लिए हर समय  सेवा में तत्पर है l

वर्तमान में इस स्थान को रमणिक स्थल के रूप में बनाने के उद्देश्य से मेघवाल समाज की ओर से ट्रस्ट का निर्माण किया गया है। वर्तमान में इस स्थान की देखरेख, नव निर्माण आदि कार्य ट्रस्ट की देखरेख में ही करवाया  जा रहा है । यह तपोभूमि मेघवाल समाज की अमूल्य धरोहर है जो धार्मिक व आध्यात्मिक आस्था से जुड़ी है। इस स्थान पर वर्ष में एकबार विशाल जम्मा/सत्संग का आयोजन किया जाता है। जहाँ आस पास के क्षेत्र के अलावा दूर दराज से भी मेघवाल समाज के सैंकड़ों स्त्री पुरुष इस तपोभूमि पर अपनी मनोकामना के साथ शरीक होते हैं ।

संत शिरोमणि मेघ धारू जी मेघवाल ( Sant Shiromani Dharu meghwal ) समाज के गौरवशाली इतिहास के महान संत हुए हैं जिनकी वाणीया उनके समय  काल से अभी तक अनवरत मेघवालों द्वारा गाई जा रही है जो मौखिक रूप से सुरक्षित है ।


बगदाराम बोस बालोतरा
पूर्व सहायक प्रशासनिक अधिकारी

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