Maa par kavita । माँ पर कविता । poem on mother.

Maa par kavita । माँ पर कविता । poem on mother


Maa par kavita.

Hindisarijan में आप सभी का एक बार फिर से आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है । दोस्तों की कड़ी में कुछ विशेष रचना Maa par kavita लेकर आए  है । केवल Mother's day मनाकर इतिश्री कुछ नहीं होगा क्योंकि Maa to Maa होती है । इसी विषय पर Poem on mother in hindi. कवि बाबूराम सिंह ने अच्छे से प्रकाश डाला है - mata hai Anmol ratan -

स्वांस स्वांस में माँ है समाई, सदगुरुओं की माँ गुरूताई,
श्रध्दा  भाव  से करो  जतन, माता  है अनमोल  रतन ।

अमृत है माता की वानी, माँ आशीश है  सोना -चानी,
माँ  से  बडा़ ना  कोई  धन, माता  है अनमोल  रतन ।

माँ का मान बढा़ओ जग में, सेवा से सब पाओ जग में,
मणि माणिक  माता  कंचन, माता  है अनमोल रतन ।

सुख शान्ति माता से आता, हैं ए सबकी भाग्यविधाता,
हुलसित हो  माता से  मन, माता  है अनमोल  रतन ।

प्यार दुलार है परम अनूठा, माँ सेवा बिन सब है झूठा,
महि  कानन माता है  गगन, माता  है अनमोल रतन ।

माँ में वास करें सब देवा, करो प्रेम से माँ की सेवा,
शान्ति सरस पाओ हर छन, माता है अनमोल रतन ।

सोच अभी हो जा सावधान, माता चरण झुके भगवान,
मोक्ष मुक्ति  माता के शरन, माता है अनमोल रतन ।

साधु संत ज्ञानी दानी, माँ से है सबकी कहानी,
माँ से हो तप त्याग भरन, माता हैं अनमोल रतन ।

माँ की हरदम लखो  छवि, करवध्द बाबूराम  कवि,
सेवा का दृढ़ ले के परन, माता हैं अनमोल रतन ।



सर्वोपरि है माता जग में 

सबकी भाग्य विधाता जग में,
सर्वोपरि   है   माता   जग  में ।

जग  की  सदा बहार है माता,
सृष्टि   की  आधार   है  माता ।
शोक ,दुख   को   हरने  वाली
सब  सुखों की  सार  है माता ।

माँ   से  बडा़   ना  कोई  नाता, 
सर्वोपरि   है   जग   में   माता ।

सदगुरू   शुभ  ज्ञान  है  माता,
हँसी - खुशी, मुस्कान  है माता ।
पालन, पोषण  में अति  अनूठा
धरती   की  भगवान  है  माता ।

माँ  सेवा  शुभ  दाता  जग  में,
सर्वोपरि   है   माता   जग  में ।

राजा -  रंक, फकीर, भिखारी,
सबके गति  को  सदा  सुधारी ।
बडा़  नहीं अग - जग  में  कोई,
माता   के   सम   है  हितकारी ।

धन्य  जो  माँ गुण गाता जग में,
सर्वोपरि    है   माता   जग   में ।

मातु चरण  में  शीश  छुका  के,
बाबूराम कवि  कहे बिलखा के ।
धन्य   करो   अब   हे  मातेश्वरी
निज  शरण में  मुझे  अपना के ।

तुमबिना कुछ नहीं भाता जग में,
सर्वोपरी    है    माता    जग   में ।

 माँ सम ना कोई जग में दूजा 

प्यार  से  करना  निस दिन  पद  पूजा।
माँ   सम   ना   कोई  जग   में   दूजा ।

      Maa ममता की मूरत है,
      ईश्वर की प्यारी सूरत है।
     माँ दूग्ध पियुष सम जग में,
     माँ सबकी शख्त जरूरत है।

माता    ज्ञान    रग  -  रग    में    गूंजा।
माँ    सम   ना   कोई   जग  में  दूजा।।

       माँ सबकी हितकारी  है,
       घर-आंगन की फूलवारी है।
       अनमोल कृति है ईश्वर की,
       माँ अवनी से भी भारी है।
नित   प्रातः उठी  माँ पद   को  छू जा।
माँ   सम   ना   कोई  जग  में    दूजा।।
   कोयला कनक बनाने वाली,
   सत्य, धर्म सिखलाने वाली।
   सर्व सुख न्योछावर  करके,
   अंतः उजियार  जलाने वाली।
दिनता   में   भी   देकर   रस  - भूजा।
माँ   सम   ना   कोई   जग  में   दूजा।।
   धन्य वहीं जो माँ गुण गाये,
   सर्वदा माँ का ऋण चुकाये।
   माता श्री  के  शुभ चरणों में,
   अवनी-अम्बर सा झुक जाये।
प्रेमाश्रु    मातु    चरण   पर   चू   जा।
माँ   सम   ना   कोई  जग   में   दूजा।।

Poem on mother in hindi.


 माँ का मन सुचि गंगा जल है 

सकल जगत की धोती मल है।
माँ का मन सुचि  गंगाजल  है।।

हित - मित   संसार  में   स्वार्थ,
भ्राता,पत्नि  के प्यार में स्वार्थ।
बेटा - बेटी  आदि   जितने  भी-
सबके सरस व्यवहार में स्वार्थ।

पावन  माँ  का  प्यार  अचल  है।
माँ  का  मन  सुचि  गंगाजल  है।।

कूछ भी हो कभी नहीं घबडा़ती,
गजब  अनूठी   माँ   की   छाती।
पति , पुत्र   हेतु   आगे   बढ़कर-
माँ  यमराज से  भी  लड़  जाती।

माता  सभी  प्रश्नों   का  हल  है।
माँ का  मन  सुचि गंगा  जल  है।।

सभ्यता, संस्कार कुबेटा में  बोती,
माता कदापि कुमाता नहीं होती।
दीनता, दुख, विपत्ति को  सहकर-
देती  जग   को  सत्य  की  मोती।

सभय अभय करती  हर  पल  है।
माँ  का मन  सुचि  गंगा  जल  है।।

सुख - शान्ति   सरस   उपजाती,
सबका   मान   सम्मान   बढा़ती।
जग  सेवा  में   सर्वस्य   लुटाकर-
मन  ही   मन   हरदम  मुस्काती।

सर्वोपरि जग  सेवा  का   फल  है।
माँ  का  मन सुचि  गंगा   जल  है ।
Poem on mother in hindi.

 माँ का भव्य रूप


हर  एक  दृश्य  नजारों  में  है।
माँ का भव्य रूप हजारों में है।।

बहु - बेटी, पत्नी, बहन  सभी, 
माँ  का  है  सुचितम  स्वरूप।
अतिशय  सुखदायी  है  इनके,
सहज, सरल शुभ  भाव अनुप।

प्यार - दुलार, मनुहारों  में  है।
माँ का भव्य रूप हजारों में है।।

ना कोई  हँसता ना  कोई रोता,
ना कोई जगता ना कोई  रोता।
विधी  का विधान  रूक  जाता-
माँ नहीं  होती कुछ नहीं  होता।

दुनियां  देश  घर व्दारों   में  है।
माँ का भव्य रूप हजारों में है।।

माँ  है  जगत की  दीया- बाती,
सृष्टि  की   है  अनुपम   थाती।
सदगुरू, ईश  सब देवी - देवता-
जन्म- जीवनकी माँ  है  साथी।

हरि के अनेक  अवतारों  में  है।
माँ का भव्य  रूप हजारों में है।।

नभ, वसुधा, जल, अनल   में,
छाया - धूप, वायु  हलचल  में।
माँ   की  महिमा  अपरम्पार  है-
तल, तलातल  अतल भुतल  में।

सूरज, चंदा  और   तारों   में  है।
माँ का  भव्य रूप हजारों में  है।।

करुणामयी Maa

प्यार -दुलार  वात्सल्यमयी  माँ ,
सब कुछ बच्चों को सिखलाती।
पढा़-लिखा दिखला पथ  सारा,
चार  चाँद   जीवन  में  लगाती।
ममता  महिमा   परम   अनूठा,
प्रथम  गुरु  माता  ही   जग  में-
सृष्टि  सार  उजियार  जगत  में ,
जीवन  की   है  अनुपम  थाती।

अग-जग में नहीं माँ  की उपमा ,
बच्चों  की   माँ   दीपक  -बाती।
दुख-सुख  की है भाग्य  विधाता ,
बच्चों को खिला भुखे सो जाती।
सहज सरल  भव्य  भाव भूषित ,
तिल तिल होमकर  सर्वस्य निज-
बच्चों   की  डगमग   नइया  को,
खेई    के   माता  पार    लगाती।

माँ   चरण   में   तीर्थ  धाम  वसे,
यह   वेद   शास्त्र   बतलाता   है।
अर्चन  पूजन  वंदन  करता   जो,
राज  हर  खुशियों  का  पाता  है।
परमात्मा  से  भी  बडी़   है    माँ ,
यही  सर्व  सम्मत  का सत्य  सार-
माँ   चरणों   के   आशीर्वाद    से,
यह  जीव  जग  से  तर  जाता है।

माँ    कल्पवृक्ष    माँ     कामधेनु ,
माता    ही    पारस    मणी     है ।
जग  जीवन  ज्योतित  कर  देती,
माँ  वह  सदज्ञान   की   छडी़  है ।
दुख  सुख   में  परिवर्तित  करके,
सत्य    सार    सदा   देने    वाली-
उत्तम     से     उत्तम     सर्वोतम ,
माँ    महा    औषधी    जडी़   है।

उम्मीद करते है आज रचना Maa par kavita आपको अच्छी लगी होगी । आप अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य लिखे ।। बाबूराम सिंह कवि ।।

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