Padhymini par kavita in hindi - जौहर - ज्वाला पद्मिनी

Padhymini par kavita in hindi - जौहर - ज्वाला पद्मिनी

 

Padhyamini par kavita in hindi.


Padhyamini par kavita. भारत के गौरवशाली इतिहास में राजस्थान के मेवाड़ का इतिहास शौर्य और त्याग की गाथाओं का सिरमौर रहा है । मेवाड़ के ही राजा रतन सिंह और रानी पद्मिनी की अमर प्रेम कहानी प्रेम, त्याग, वीरता देशभक्ति और स्वाभिमान की मिसाल है । तो चलिए पेश करते है Padhymini par kavita in hindi - जौहर - ज्वाला पद्मिनी

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
             राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
             वो मेवाड़ की रानी थी।

गन्धर्वराज घर की किलकारी,
         चम्पावती की मन ज्योति।

सिंहलद्वीप की राजरागिनी , 
        स्त्री की थी उच्चतम कोटि।

सुंदरता तन में भी अनुपम ,
        मन बुद्धि संग जीत मनोति।

रतन सेन को भान हुआ तो ,
          बनी वो प्रेम कहानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
             राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
             वो मेवाड़ की रानी थी।

चमक चाँदनी सी,शोभा सूरज ,
                सुरभि सरस मनोहर ।

श्वास सुरों सी ,वचन मधुरतम ,
               राज्य की बनी धरोहर ।

गन्धर्वसेन तब रचा स्वयंवर ,
                पाने को राज सुयोवर ।

जीत स्वयंवर रतनसिंह तब ,
           पद्मिनी अपनी बनानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

एक परी सी थी वो सुंदर , 
         स्वर्ग अप्सराएं भी शरमाई।

राजा रतन संग ब्याह रचा कर,
            गढ़ चित्तोड़ में वो आई ।

बचपन को करके विदा,
       वो मन ही मन लगती हर्षाई ।

पीहर छोड़, प्रजा मन रम गयी ,
             शान चित्तोड़ रवानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
               राजस्थान कहानी थी ।

Chitod ki rani Padhyamini ka amr prem kahani -


रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी,
               वो मेवाड़ की रानी थी।

रानी बन वो चित्तोड़ में आई,
          मान रतन का गगन हुआ ।

पल-क्षण सब रंगत से भर गए,
         समय साथ अब रतन हुआ।

जन-जन में खुशियों की बारिश,
           राजमहल मन मगन हुआ।

रतन पद्मिनी महल चढे जब,
          प्रजा की आन निभानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
                राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी,
                वो मेवाड़ की रानी थी।

राज-काज राजा के बल पर,
            रानी फिर भी साथ बनी ।

सुंदर रानी की प्रसिद्धि जब,
           भारत भर  में  आम बनी ।

त्याग-वीरता तन-मन में बसी,
            प्रजा की वो जुबान बनी।

सुंदरता से थी वह ऊपर ,
       आखिर तो वह क्षत्राणी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

दिल्ली सल्तनत पर था काबिज,
          ख़िलजी जो सुल्तान हुआ।

अलाउदीन ही नाम था उसका,
         पर रावण सा शैतान हुआ ।

चर्चा जब दरबार में पहुँची ,
        सुंदर पद्मिनी  बखान हुआ ।

जागा वो उत्पाती मन था ,
        चोट भी जिसको खानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
               राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

ख़िलजी ने तब रची कूटनीति ,
          चित्तोड़ राज मेहमान बना।

पाने को एक झलक पद्मिनी की ,
           उसका मन परेशान बना ।

झलक मिले वो उस क्षत्राणी ,
          बस उसका अरमान बना ।

जल-बिम्ब दिखा ऐसे संयोग से ,
            विधि को बात बनानी थी।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
                राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
                वो मेवाड़ की रानी थी।

झलक पाकर जब वो शातिर ,
         पाने को बस आतुर ही लगा।

राजा रतन किया आतिथ्य तो ,
          छल-बल से उनको ही ठगा।

अगवा कर ,फिर बन्दी बनाया ,
            कैदखाने में उनको रखा ।

शर्त रखी पद्मिनी देने की ,
          पर रतन बात न मानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
             राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
             वो मेवाड़ की रानी थी।

भान हुआ जब राजपूतों को ,
     राज-रतन को क्यों-कैसे छला।

क्षत्राणियां भी जोश से भर गयी ,
          पद्मिनी का भी मन उबला।

गोरां-बादल लगी खबर तब,
      शौर्य उनका बिजली सा चला।

जान भले बलिदान करें अब ,
       स्वतन्त्रता राजा दिलानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

छल से छली को ही छलने की ,
               सब करने लगे तयारी ।

सजा पालकियां बैठे सैनिक,
            छुप हाथ लिये तलवारी ।

भरम फैलाया कि रानीसा ,
       जाती ख़िलजी के दरबारी ।

पालकियों में जमें थे सैनिक,
        जिनकी रगे बलिदानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
             राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
            वो मेवाड़ की रानी थी।

गोरां बादल पालकियां लेकर ,
     चल तो दिये दिल्ली की ओर ।

छल-बल से राजा को छुड़ाकर,
         लौटे तो मच गया था शोर ।

गौरां जब रणखेत हुआ , 
    बादल संग रतन दिखाया जोर ।

ख़िलजी को धता बताकर ही ,
            चित्तोड़ शान बढ़ानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
               राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
               वो मेवाड़ की रानी थी।

चन्द मेवाड़ के राजपूतों ने ,
      सेना सल्तनत को आज ठगी ।

ख़िलजी को जैसे लगा तमाचा ,
         चोट अभिमान पे ऐसी लगी।

हार-चोट पर पद्मिनी-लालसा ,
          आग बनी तन-मन में लगी ।

गौरां-बादल की देख वीरता ,
         उसे दांतों ऊँगली दबानी थी।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
                राजस्थान कहानी थी ।

Padhyamini jauhar par kavita in hindi.



रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
               वो मेवाड़ की रानी थी।

लेकर बड़ा एक सैनिक-दल बल ,
              घेरा डाला मेवाड़ जमीं ।

किला चित्तोड़ शत्रु घेर लिया,
       प्रजा की लगी थी साँस थमीं ।

क्षत्रियों के तन क्रोध से जल उठे ,
       राजपूती तलवारें जोर खिचीं ।

वीरों ने फिर पहन ‘केसरियां’ ,
           ‘शाका’ की मन में ठानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
                  राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
               वो मेवाड़ की रानी थी।

शत्रु सेना का जोर देखकर ,
       चित्तोड़ उठी एक लहर गमीं ।

क्षत्रियों ने तब लोहा लेकर ,
      लाल कर दी थी आज जमीं ।

थाह स्तिथि सेना लेकर ,
    क्षत्राणियों-नैन में बढ़ गई नमी ।

नैनों में अब ज्वाला भरकर ,
          आन स्वयं की बचानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
               राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
               वो मेवाड़ की रानी थी।

Rani padhyamini jauhar par kavita -


जीत सामने देख शत्रु की ,
  मन को इस्पात सा कठोर किया ।

जिस तन को अभिमान से संवरा,
            आग समर्पण ठान लिया।

पतिव्रता का प्रण मन लेकर ,
      सती ही निज को मान लिया ।

पद्मिनी ने तब जौहर करने की ,
            सबको बात बखानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

शत्रु जीत के जीत न पाए ,
   आओ आज ही कुछ कर जाएं ।

अब करना क्या जीकर बहनों ,
        मरकर एक इतिहास बनाएं ।

तन को जला के राख बनाएं,
      आओ अब इस ज्वाल समाएं।

ढोल नगाड़ो के तेज स्वर में ,
         ज्वाला तेज भड़कानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

कर सोलह श्रृंगार दुल्हन सा,
       सोलह हजार की संख्या हुई। 

बड़ी विशाल सी चिता बनाके ,
       झुण्ड के झुण्ड ही कूद गयी।
 
चिंगारियां अब ज्वाला बन गयी,
              सुंदरता अब राख हुई।

ख़िलजी जब किले में आया ,
        भष्म ही रही पहचानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी ,
              वो मेवाड़ की रानी थी।

शान-आन स्वाभिमान के खातिर,
             वो ज्वाला में लीन हुई ।

ख़िलजी जो भारत मालिक था,
            स्तिथि उसकी दीन हुई ।

सुंदरता उस देह की आखिर,
        ज्वाल में जल न मलीन हुई।

ज्वाला से मिल गई ज्वाला वो ,
              ऐसी पद्मिनी रानी थी ।

धधक उठी ज्वाला जौहर की ,
              राजस्थान कहानी थी ।

रतन सिंह मन-प्रेम पद्मिनी,
             वो मेवाड़ की रानी थी।

डी कुमार अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/ राजस्थान )

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने